प्राणी जगत : वर्गीकरण, लक्षण, फाइलम, उदाहरण, जानें A-Z,

नमस्कार दोस्तों, क्या आप प्राणी जगत (Animal kingdom in hindi) के बारे में कम्प्लीटली जानना चाहते है यदि हाँ तो यह आर्टिकल आप ही के लिए है। इस आर्टिकल में आपको प्राणी जगत के बारे में स्टेप बाई स्टेप पूरी जानकारी दी गयी है तो चलिए बिना समय बर्बाद किये पढ़ना शुरू करते है।

Table of Contents

प्राणी जगत किसे कहते है? (What is Animal kingdom in hindi?)

हमारे पृथ्वी पर लगभग 10 –12 लाख से ज्यादा प्रकार के जंतु मिल रहे है, और प्राणी जगत की स्थापना सर्वप्रथम कार्ल लीनियस ने दो जगत प्रणाली में की थी। जिसमे इन्होने जीवो को दो जगत में बाँट दिया था। पादप जगत (Kingdom Plantae) और प्राणी जगत (Kingdom Animalia)।

प्राणी जगत का वर्गीकरण (Classification of Animal kingdom in hindi)

प्राणी जगत का वर्गीकरण बैज्ञानिक जार्ज क्युवियर ने किया था। 

इन्होने जंतु जगत को 31 संघो (Phylum) में बांटा जिनमे से 10 बड़े – बड़े संघ है जिसे दीर्घ संघ (Major Phylum) कहा जाता है, और 21 छोटे- छोटे संघ है जिसे लघु संघ (Miner Phylum) कहा जाता है। इनमे से हम 11 संघ पढ़ेंगे जिनमे 10 दीर्घ संघ और 1 लघु संघ होगा।

11 संघो के नाम (Name of 11 Phylum) –

दोस्तों आपको इस 11 संघ को सीरियल वाइज याद करना होगा तभी आपको पढ़ने में और समझने आसानी होगी।

Sr. No.संघ (Phylum)Example
1PoriferaSycon
2CoelenterataObelia
3CtenophoraTinoplana
4PlatyhelminthesTaenia (Tapeworm)
5Aschelminthes/NematodaAncylostoma
6AnnelidaNerels
7ArthropodaPalaemon (Prawn)
8MolluscaPila (apple snail)
9EchinodermataStarfish
10HemichordataBalanoglossus
11Chordata Fish, Bird, human, etc

इनमे से टीनोफोरा (Ctenophora) लघु संघ है।

प्राणी जगत का वर्गीकरण करने के आधार –

प्राणी जगत का वर्गीकरण 6 आधारों पर किया गया है।

  1. शरीर का संगठन
  2. सममिति (Symmetry)
  3. जर्म स्तर (Germ layer)
  4. प्रगुहा (Coelom)
  5. खंडीभवन (Segmentation)
  6. पृष्ठरज्जु (Notochord)
शरीर का संगठन –

शरीर संगठन का मतलब है कि जन्तुओ का शरीर कैसे बना है जैसे हमारा शरीर कोशिकाओ से बना है और कोशिकाए मिलकर ऊतक बना रही है और ऊतक मिलकर अंग बना रहे है और अंग मिलकर अंग तंत्र बना रहे है। यानि कि हमारे शरीर का संगठन कैसा हुआ, अंग तंत्र स्तर का संगठन, क्योकि हमारे शरीर में अंग तंत्र मिल रहा है।

लेकिन कुछ ऐसे जंतु होंगे जिनमे अंगतंत्र नही मिलेगे सिर्फ अंग मिलेंगे तो इनके शरीर का संगठन अंग स्तर का संगठन होगा। कुछ ऐसे जंतु होंगे जिनमे अंग नही मिलेगा ऊतक मिलेंगे तो इनका शरीर ऊतक स्तर का संगठन होगा और कुछ में ऊतक नही मिलेंगे सिर्फ कोशिका होंगी तो इनका शरीर कोशिका स्तर का संगठन होगा।

अंग तंत्र स्तर का संगठन दो तरह का होता है। पाचन तंत्र और परिसंचरण तंत्र।

पाचन तंत्र – यह दो प्रकार का होता है पूर्ण पाचन तंत्र और अपूर्ण पाचन तंत्र5वे संघ से लेकर 11वे संघ तक में पूर्ण पाचन तंत्र पाया जाता है और 2, 3 और 4वे संघ में अपूर्ण पाचन तंत्र पाया जाता है। 

परिसंचरण तंत्र – यह भी दो प्रकार का होता है। खुला परिसंचरण तंत्र और बंद परिसंचरण तंत्र। खुला परिसंचरण तंत्र 7 और 8वे संघ में पाया जाता है और बंद परिसंचरण तंत्र 11वे संघ में पाया जाता है।

सममिति (Symmetry) –

इसका मतलब अगर किसी शरीर को काटा जाय एक अक्ष से जो शरीर के केंद्र से जाती हो चाहे अनुलंबीय या अनुप्रस्थ हो या कैसे भी काटो अगर दो बराबर भाग मिलते है तो ऐसी सममिति अरीय सममिति कहलाती है। यह सममिति 2, 3 और 9वे संघ में मिलती है लेकिन 9वे संघ में यह सममिति वयस्क आवस्था में मिलती है।

और दूसरा शरीर को कैसे भी काटो दो बराबर भाग कभी भी नहीं मिलेंगे तो ऐसी सममिति को असममिति कहते है। यह सममिति पहले संघ (Porifera) में मिलती है।

ऐसा प्राणी जिनका शरीर सिर्फ एक अक्ष से काटने पर ही दो बराबर भागो में मिलते है तो ऐसी सममिति को द्विपार्श्व सममिति कहते है। यह सममिति 4 से लेकर 11वे संघ में मिलती है। 9वे संघ के लार्वा अवस्था में मिलता है।

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जर्म स्तर (Germ layer) –

ये वे स्तर होती है जो भ्रूणीय अवस्था में होती है और ये स्तर विभेदित होकर सम्पूर्ण शरीर बनाती है। ये स्तर तीन प्रकार की होती है।

  1. Ectoderm
  2. Mesoderm
  3. Endoderm

बाहरी स्तर को एक्टोडर्म, बीच वाले स्तर को मीसोडर्म और आतंरिक स्तर को एन्डोडर्म कहते है।

जिन जन्तुओ में ये तीनो स्तर पाये जाते है उन्हें त्रिकोरिक (Triploblastic) जंतु कहते है।

उदाहरण – Platyhelminthes संघ से लेकर Chordata संघ तक त्रिकोरिक जंतु है। 

जिन जन्तुओ में Ectoderm और Endoderm ये दो ही स्तर पाये जाते है उन्हें द्विकोरिक (Diploblastic) जंतु कहते है। इन स्तरों के बीच में जेलिनुमा एक पदार्थ होता है जिसे Mesoglea कहते है। 

उदाहरण – Porifera, Coelenterata और Ctenophora संघ द्विकोरिक जंतु है।

प्रगुहा (Coelom) – 

शरीर की देह्भित्ति (Body wall) और आहारनाल भित्ति (Gut wall) के बीच की खाली जगह को प्रगुहा या सीलोम कहते है। इन खाली जगह में अतरंग अंग (Hollow organ) पाए जाते है। ऐसे अंग जो अन्दर से खोखले होते है अतरंग अंग या Visceral organ कहलाते है।

जैसे – हमारा ह्रदय, फेफड़ा, लीवर, मस्तिष्क आदि। 

Coelom, प्राणी जगत, animal kingdom
Coelom

यह प्रगुहा मीसोडर्म के टूटने से बनी है।

सीलोम के आधार पर तीन प्रकार के प्राणी होते है।

अगुहिकीय (Acoelomate) –

ऐसे प्राणी जिनमे प्रगुहा नही होता है उन्हें अगुहिकीय कहते है। जैसे – 1, 2, 3, और 4वे संघ के प्राणी। 1, 2, 3, ये द्विकोरिक होते है इनमे mesoderm होता ही नही है तो सीलोम कहा से बनेगा लेकिन चौथा संघ त्रिकोरिक होता है और इसमें mesoderm होता है लेकिन यह mesoderm टूटता ही नहीं तो सीलोम कहाँ से बनेगा यानि कि इसमें भी सीलोम नही बनता है। अर्थात् ये चारो संघ अगुहिकीय (Acoelomate) कहलाते है।

प्रगुहिकीय (Coelomate) –

ऐसे प्राणी जिनमे मीसोडर्म के टूटने से प्रगुहा बनता है प्रगुहिकीय कहलाते है। इन्हें वास्तविक प्रगुहिकीय भी कहते है। यह प्रगुहा मीसोडर्म के स्तर से स्तरित होता है। उदाहरण – 6-11वे संघ तक प्रगुहिकीय कहलाते है।

कूटगुहिकीय (Pseudocoelomate) –

ऐसे प्राणी जिनमे प्रगुहा मीसोडर्म का एक्टोडर्म की तरफ खिसकने से बनता है। उदाहरण – पांचवा संघ के प्राणियों में होता है। 

खंडीभवन (Segmentation) –

जब शरीर को खंडो में बाँट दिया जाता है तो उसे खंडीभवन कहते है। यह दो प्रकार का होता है।

सतही खंडीभवन (Surface segmentation) – जब सिर्फ शरीर के सतह का खंडीभवन किया जाता है उसके अंगो का नही किया जाता है तो ऐसे खंडीभवन को सतही खंडीभवन कहते है। उदाहरण – Coelenterata.

वास्तविक खंडीभवन (True segmentation) – जब शरीर के सतह के साथ – साथ अंगो का भी खंडीभवन कर दिया जाता है तो उसे वास्तविक खंडीभवन कहते है। उदाहरण – ऐनेलिडा, आर्थोपोडा और कोर्डेटा। 

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पृष्ठरज्जु (Notochord) – 

पृष्ठ भाग पर कठोर, लचीली, छडाकर जैसी संरचना मिलती है जिसे पृष्ठरज्जु (Notochord) कहते है। यह पृष्ठरज्जु जिन जन्तुओ में मिलती है उन्हें रज्जुकी (Chordates) कहते है और जिनमे नही मिलती है उन्हें अरज्जुकी (Non-chordates) कहते है।

1 से 10 संघ तक के जंतु अरज्जुकी होते है। 11 संघ या कोर्डेटा के जंतु रज्जुकी होते है।

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दोस्तों हम लोग 6 आधार के बारे में पढ़ चुके है अब हम लोग संघो के बारे में अध्ययन करेंगे 

संघ पोरिफेरा (Phylum Porifera)

Sycon, animal kingdom प्राणी जगत

संघ पोरिफेरा के मुख्य लक्षण (Phylum Porifera in Hindi) –

  • ये जलीय होते है। ज्यादातर लवणीय जल में पाए जाते है।
  • ये असममिति दर्शाते है।
  • इनका शारीरिक संगठन कोशिकीय स्तर का होता है।
  • इनमे जल परिवहन या नाल तंत्र मिलता है। जल परिवहन का मतलब इन स्पंज के अन्दर जल जिनमे पोषणीय पदार्थ और गैसे होती है जो छोटे – छोटे छिद्रों से अन्दर जाते है जिनमे से पोषक तत्वों को यूज़ में ले लिया जाता है और अपशिष्ट पदार्थ को बड़े छिद्र से बाहर निकाल दिया जाता है। छोटे छिद्रों को dकहते है और बड़े छिद्र को ओस्कुलम कहते है।
  • ये द्विकोरिक होते होते है।
  • इन स्पंज का शरीर दो स्तरों से बनी होती है एक बाहरी स्तर होता है जिसे पिनैकोडर्म (Pinacoderm) कहते है इस स्तर का निर्माण Ectoderm layer करता है। इन पिनैकोडर्म के प्रत्येक कोशिका को पिनैकोसाईट (Pinacocyte) कहते है। और अन्दर वाली स्तर को कोइनोडर्म (Choanoderm) कहते है इसका निर्माण Endoderm layer करता है। कोइनोडर्म के प्रत्येक कोशिका को कोइनोसाईट (Choanocyte) कहते है। इन्ही दोनों स्तरों के बीच में छोटे – छोटे छिद्र होते है जिन्हें ओस्टिया (Ostia) कहते है। और तो और इन्ही स्तरों के बीच में Mesoglea होती है जिसमे कांटे दार संरचनाये मिलती है जिसे कंटक (Spicules) या स्पोंजिन तंतु (Spongin fibre) कहते है ये कंटक अलग – पदार्थो से मिलकर बने होते है। इसलिए इस संघ को इसी कंटक के आधार पर अलग – अलग वर्गो वर्गीकृत करते है।  
  • इनका वर्गीकरण कंकाल या कंटक के आधार पर किया जाता है।
  • ये द्विलिंगी होते है।
  • इनमे अलैंगिक जनन मुकुलन, विखंडन विधि द्वारा होता है।
  • इनका परिवर्धन या विकास अप्रत्यक्ष होता है।
  • इनमे पुनुरुद्भावन की क्षमता पायी जाती है।
  • उदाहरण – साईकन, स्पोंजिला (स्वच्छ जल), युस्पोंजिया (बाथस्पंज)।
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संघ सीलेन्ट्रेटा (Phylum Coelentrata)

Obelia colony , animal kingdom प्राणी जगत
Part of Obelia colony

संघ सीलेन्ट्रेटा के लक्षण –

  • इनमे अरीय सममिति मिलती है।
  • इनमे शारीरिक संगठन ऊतक स्तर का मिलता है।
  • ये समुद्री जल में मिलते है लेकिन Hydra साफ पानी में मिलता है।
  • इनके शरीर के अन्दर जिसमे भोजन पचता है उसे सिलेंट्रोन या जठर गुहा कहते है। इसी सिलेंट्रोन शब्द से इस संघ का नाम सिलेंट्रेटा रखा गया है। 
  • इनमे दंशकोशिका (नाइडोब्लास्ट) शरीर के कुछ भागो पर और स्पर्शक पर पायी जाती है जो शरीर को चिपकने में, आत्मरक्षा करने में और शिकार करने में सहायता करती है।
  • इनमे पाचन अन्तः कोशिकीय प्रकार का होता है। यानि की कोशिका के अन्दर होता है।
  • इनका शरीर दो प्रकार की संरचना दर्शाता है एक पोलिप या बेलनाकार और दूसरा मेडुसा या छतरी के आकार का होता है। लेकिन इस संघ में एक ऐसा जीव भी है जिसमे ये दोनों प्रकार के संरचना पायी जाती है जिसका नाम है Obelia। यह जंतु जब अलैंगिक जनन करता है तो छतरी आकार का जंतु बनता  है और यह छतरी आकार का जंतु जब लैंगिक जनन करता है तो बेलनाकार का जंतु बनता है यानि की इस जंतु में पीढ़ी एकांतरण होता है। 
  • उदाहरण – फाइसेलिया, हाइड्रा, ओबेलिया, ओरेलिया आदि    

संघ टीनोफोरा (Phylum Ctenophora)

Pleurobranchia, Colloblast cell highly, animal kingdom

यह लघु संघ है।

संघ टीनोफोरा के सामान्य लक्षण –

  • इनको काम्ब जेली या समुद्री अखरोट भी बोला जाता है, क्योकि इनके शरीर की सतह पर 8 कंघेनुमा प्लेट पायी जाती है। और इनकी संरचना अखरोट की जैसी होती है।
  • इनमे अरीय सममिति होती है।
  • ये द्विकोरिक होते है।
  • इनका शारीरिक संगठन ऊतक स्तर का होता है।
  • इस संघ के सदस्य को पैलेजिक कहते है क्योकि ये समुद्र की सतह पर पाए जाते है।
  • इनमे दो बड़े स्पर्शक पाए जाते है जिनपर विशेष प्रकार की कोशिका मिलती है जिसे लैसो कोशिका (कोलोब्लास्ट) कहते है जो शिकार को पकड़ने में सहायता करती है।
  • इनमे पाचन बाह्य कोशिकीय और अन्तराः कोशिकीय दोनों प्रकार का होता है।
  • जीवसंदीप्ति (Bioluminescence) इनका मुख्य लक्षण है। जीवसंदीप्ति का मतलब ये जीव जगमगाते है।  
  • इनमे केवल लैंगिक जनन मिलता है और ये भी द्विलिंगी होते है। इनमें निषेचन बाहर होता है।
  • उदाहरण – प्लूरोब्रेंकिआ, टिनोप्लाना।

संघ प्लेटिहेल्मिन्थीज (चपटे कृमि) (Phylum Platyhelminthes)

Fasciola hepatica, Platyheminthes

संघ प्लेटिहेल्मिन्थीज के सामान्य लक्षण –

  • इनकी पृष्ठ सतह चपटी होती है इसलिए इन्हें चपटे कृमि (flatworms) कहा जाता है।
  • इनमे द्विपार्श्व सममिति होती है ये त्रिकोरिक होते है और इनमे सीलोम नही मिलती है।
  • इनमे शारीरिक संगठन अंग स्तर का होता है।
  • इनमे विशेष प्रकार की कोशिका पायी जाती है जिन्हें ज्वाला कोशिका (Flame cell) कहते है। जो उत्सर्जन में सहायता करती है। उत्सर्जन अंग का नाम Protonephridia है। 
  • इस संघ के अधिकतर प्राणी अन्तः परजीवी होते है, जिनमे चूषक पाए जाते है।
  • इसमें अधिकांश प्राणी द्विलिंगी होते है और निषेचन आंतरिक होता है।
  • प्लैनेरिया में पुनरुद्भावन की असीम क्षमता होती है। इसका मतलब अगर प्लेनेरिया के शरीर का छोटा सा भाग काट दिया जाय तो उस कटे हुए भाग से पुनः प्लेनेरिया बन जायेगा।
  • उदाहरण – टीनिया, फेसियोला, प्लेनेरिया आदि।

संघ एस्केहेल्मिथीज (गोल कृमि) (Phylum Aschelminthes)

Wuchereria bancrofti, Aschehelmithes

संघ एस्केहेल्मिथीज के सामान्य लक्षण –

  • इस संघ के प्राणियों को जब अनुप्रस्थ रूप से काटा जाता है तो ये गोल प्रतीत होते है इस कारण इन्हें गोल कृमि कहा जाता है।
  • ये जलीय होते है, स्थलीय होते है , मुक्तजीवी होते है या पादपो और जन्तुओ में परजीवी होते है।
  • इनमे द्विपार्श्व सममिति मिलती है। 
  • ये त्रिकोरिक होते है और इनमे कूटगुहा पायी जाती है।
  • इनमे सर्वप्रथम अंग तंत्र स्तर का शारीरिक संगठन मिलता है।
  • इनमे आहार नाल पूर्ण होती है।
  • इनमे उत्सर्जन नाल/प्रोटोनेफ्रिडिया होती है और इसके अन्दर जो कोशिका होती है उसे रेनेट कोशिका कहते है। जो उत्सर्जन छिद्र के द्वारा अपशिष्ट पदार्थो को शरीर से बाहर निकाल देती है।
  • इस संघ के प्राणी एकलिंगी होते है और मादा जो है नर से बड़ी होती है।
  • इनमे निषेचन आंतरिक होता है। 
  • उदाहरण – एस्केरिस, वुचेरेरिया, एन्साइक्लोस्टोमा।

संघ ऐनेलिडा (Phylum Annelida)

Neries, Annelida
Neries

संघ ऐनेलिडा के सामान्य लक्षण –

  • ये जलीय होते है, स्थलीय भी होते है, मुक्त जीवी होते है या पादपो तथा जन्तुओ में परजीवी होते है। 
  • इनमें द्विपार्श्व सममिति मिलती है, ये त्रिकोरिक होते है और इनमे वास्तविक प्रगुहा पायी जाती है।  
  • इनमे शारीरिक संगठन अंगतंत्र स्तर का मिलता है। 
  • इनका शरीर खंडो में बंटा होता है।
  • इनमे अनुलंबीय और गोलाकार प्रकार की मांसपेशिया पायी जाती है जो गमन में सहायता करती है।
  • जलीय प्राणी नेरिस में पार्शवाद (Parapodia) पाए जाते है, जो तैरने में सहायता करते है।
  • इनमे बंद परिसंचरण तंत्र पाया जाता है।
  • इनमे उत्सर्जन वृक्कक या नेफ्रिडिया के द्वारा होता है।
  • ऐनेलिडा का शरीर नली के भीतर नली के समान होता है। 
  • तंत्रिका तंत्र में अग्र सिरे के पास एक तंत्रिका वलय और इसी से जुड़े, शरीर की लम्बाई में फैले और परस्पर जुड़े तंत्रिका रज्जू इनमे पाए जाते है।
  • इनमे लैंगिक विधि द्वारा जनन होता है।
  • उदाहरण – नेरिस, फेरेटिमा (केंचुआ), हीरुडिनेरिया (जोंक)।
जरूर पढ़ें -  आर्थोपोडा तंत्रिका तंत्र | परिचय, संरचना, घटक, कार्य, विशेषता

संघ आर्थोपोडा (Phylum Arthropoda)

Palaemon, prawn, Arthropoda
Palaemon (Prawn)

संघ आर्थोपोडा के सामान्य लक्षण –

  • आर्थोपोडा, आर्थो का मतलब संधि (Joints) और पोडा का मतलब पैर (Legs) होता है। मतलब ऐसे जंतु जिनके पैर Jointed होते है उन्हें आर्थोपोडा संघ में रखा जाता है। या ऐसे जन्तुओ को Arthropods कहा जाता है।
  • यह प्राणी जगत का सबसे बड़ा संघ है। इस संघ में कीटो को सम्मिलित किया गया है।
  • इस पृथ्वी पर पायी जाने वाली सम्पूर्ण जातियों का लगभग 65% भाग आर्थोपोडा होते है।
  • इनमे शारीरक संगठन अंग तंत्र स्तर का मिलता है।
  • इनका शरीर खंडो में बटा होता है।
  • इनमे द्विपार्श्व सममिति मिलती है, ये त्रिकोरिक होते है और इनमे वास्तविक गुहा पायी जाती है।
  • इनका कंकाल काईटिन से बना होता है और इनके उपांग (legs) सन्धियुक्त (Jointed) होते है।
  • इनका शरीर सिर, वक्ष और उदर में बंटा होता है।
  • इनमे श्वसन क्रिया शरीर की सतह, क्लोम, श्वास नलियों और पुस्तक फुफ्फुसो के द्वारा है। 
  • इनमे खुला परिसंचरण तंत्र पाया जाता है।
  • इनमे संवेदी अंगो में शृंगीकाए (Antennae), सरल नेत्र, संयुक्त नेत्र, रसायन ग्राही और स्पर्शग्राही होते है।
  • इनमे उत्सर्जन के लिए मैलपिगी नलिकाए पायी जाती है।
  • ये ज्यादातर एकलिंगी होते है और अधिकतर अंडप्रजक होते है।
  • आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण कीट – ऐपिस (मधुमक्खी), बोम्बिक्स (रेशम कीट), लैसिफर (लाख कीट)।
  • रोग वाहक कीट – मादा एनाफिलिज मच्छर(मलेरिया), क्युलेक्स मच्छर (फाइलेरिया), एडीज मच्छर (चिकुनगुनिया, डेंगू)।

संघ मोलस्का (Phylum Mollusca) 

Pila, apple snail, Mollusca
Pila (apple – snail)

संघ मोलस्का के सामान्य लक्षण –

  • यह दूसरा सबसे बड़ा संघ (Phylum) है।
  • ये स्थलीय और जलीय दोनों होते है।
  • इनमे अंग तंत्र स्तर का संगठन होता है।
  • ये द्विपार्श्व सममिति, त्रिकोरिक और प्रगुहिका वाले प्राणी है।
  • ये कोमल शरीर वाले प्राणी होते है परन्तु इनका शरीर कठोर कैल्शियम के कवच से ढका रहता है। 
  • इनका शरीर – सिर, पेशीय पाद और एक अंतरंग ककुद से बना होता है।
  • त्वचा की एक नरम स्पंजी परत ककुद के ऊपर प्रवार बनती है। यही प्रावार कवच का निर्माण करती है।
  • ककुद और प्रावार के बीच प्रावार गुहा पायी जाती है जिसमे पंख के समान क्लोम पाए जाते है जो श्वसन और उत्सर्जन दोनों में सहायता करते है।
  • इनके सिर पर संवेदी स्पर्शक पाए जाते है। जो संवेदनाओ को ग्रहण करते है।
  • इनके मुख में भोजन को पीसने के लिए रेटिजिहा (Redula) नामक अंग होता है।
  • इनमे नर और मादा अलग -अलग होते है और ये प्राणी अंडप्रजक होते है।
  • उदाहरण – पाइला (घोंघा), पिंकटाडा (मुक्ता शुक्ति), सीपिया (कटलफिश), लोलियो (स्क्विड), एप्लाईसिया (समुद्री खरगोश), ऑक्टोपस (बेताल मछली) डेंटेलियम (रद कवचर) आदि।

संघ इकाइनोडेर्मेटा (Phylum Echinodermata) 

Pentaceros, Echinodermata
Pentaceros

संघ इकाइनोडेर्मेटा का सामान्य लक्षण –

  • इन्हें एकाइनोडेर्मेटा इसलिए कहा जाता है क्योकि इस संघ के प्राणियों में कैल्शियम युक्त कंकाल पाया जाता है और इनकी त्वचा पर कंटक पाए जाते है।
  • ये सभी प्राणी समुद्री होते है।
  • इनमे भी अंग तंत्र स्तर का संगठन पाया जाता है।
  • ये त्रिकोरिक और प्रगुहिका वाले प्राणी होते है।
  • इनके लार्वा में द्विपार्श्व सममिति होती है जबकि वयस्क अवस्था में अरीय सममिति पायी जाती है।
  • इनमे पाचन पूर्ण होता है और मुख अधरतल पर तथा गुदा पृष्ट तल पर पायी जाती है।
  • इनमे जल संवहन तंत्र पाया जाता है जो गमन में, भोजन में, श्वसन में और उत्सर्जन में सहायता करता है।
  • इनमे उत्सर्जन तंत्र का आभाव होता है।
  • इनमे नर और मादा अलग – अलग होते है।
  • इनमे निषेचन बाहर होता है।
  • उदाहरण – एस्टेरियस (तारा मीन), एंटीडोन (समुद्री लिली), एकाइनस (समुद्री-अर्चिन), ओफियूरा (भंगुर तारा), कुकुमेरिया (समुद्री कर्कटी) आदि। 

संघ हेमीकोर्डेटा (Phylum Hemichordata)

Balanoglossus, Hemichordata
Balanoglossus

संघ हेमीकोर्डेटा के सामान्य लक्षण – 

  • सबसे पहले इन्हें कोर्डेटा संघ में रखा गया था लेकिन बाद में इन्हें अरज्जुकीयो (Non-chordates) में सम्मिलित कर दिया गया है।
  • ये प्राणी कृमि के समान होते है जो मुख्य रूप से समुद्री जल में पाए जाते है।
  • इनमे अंग तंत्र स्तर का संगठन पाया जाता है।
  • ये त्रिकोरिक द्विपार्श्व सममिति और प्रगुहिका प्राणी होते है।
  • इनका शरीर बेलनाकार होता है जो शुण्ड, कॉलर और लम्बे वक्ष में विभाजित होता है।
  • इनके कॉलर क्षेत्र में एक अल्पविकसित संरचना पायी जाती है जिसे स्टोमोकोर्ड कहते है जो पृष्ठरज्जू के समान संरचना होती है। इसी के कारण इन्हें पहले कोर्डेटा संघ में रखा गया था लेकिन बाद में पता चला कि यह वास्तविक पृष्ठरज्जू नही है जिस वजह से इन्हें के अलग संघ में रखा गया जिसका नाम हेमीकोर्डेटा रखा गया क्योकि ये कोर्डेटा संघ के आधे अधूरे लक्षण दिखाते है। हेमी कर अर्थ – अर्द्ध और कोर्डेटा का अर्थ रज्जुकी होता है।
  • इनमे परिसंचरण तंत्र खुले प्रकार का होता है।
  • इनमे श्वसन क्लोम के द्वारा होता है।
  • इनके शुंड भाग में शुंड ग्रंथियां पायी जाती है जो उत्सर्जन में सहायता करती है।
  • ये एक लिंगी होते है और निषेचन बाहर होता है।
  • इनमे विकास अप्रत्यक्ष होता है यानि की इनके जीवन में लार्वा अवस्था पायी जाती है जिसे टोनेरिया लार्वा कहते है।
  • उदाहरण – बैलेंनोग्लोसस तथा सैकोग्लोसस आदि। 

संघ कोर्डेटा (Phylum Chordata) –

अगर आप संघ कोर्डेटा के बारे में भी पढ़ना चाहते है तो Read more पर क्लिक कीजिये। दोस्तों यह आर्टिकल काफी बड़ा हो जा रहा था इसलिए कोर्डेटा के बारे में पूरी जानकारी दूसरे आर्टिकल में दे रखी है।

Q.1 प्राणी जगत का सबसे बड़ा संघ कौन सा है?

Ans. आर्थोपोडा प्राणी जगत का सबसे बड़ा संघ है

Q.2 अमीबा किस जगत का प्राणी है?

Ans. अमीबा प्रॉटिस्टा जगत का प्राणी है

Q.3 जंतु जगत को कितने भागों में बांटा गया है?

Ans. दूसरा हेडिंग पढ़िये

Q.4 जंतु जगत का वर्गीकरण किसने किया?

Ans. दूसरा हेडिंग पढ़िये

दोस्तों मै आशा करता हूँ कि प्राणी जगत (Animal kingdom) के बारे में दी गई जानकारी आपको पसंद आयी होगी, अगर पसंद आयी है तो प्लीज इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर कीजिये जिससे उन्हें भी इसका फायदा मिल सके और यदि इस आर्टिकल में मुझसे कही पर गलती हुई है तो प्लीज कमेंट करके जरूर बताइए।

धन्यवाद

इन्हें भी पढ़े –

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